विश्व के कई देश ऐसे हैं जहां आबादी का एक बड़ा हिस्सा गरीबी और निर्धनता से जूझ रहा है। गरीबी का आलम यह है कि लोगों को एक वक्त का भोजन तक नसीब नहीं है। शिक्षा तो दूर की बात है, करोड़ों लोग ऐसे हैं, जिनके पास जीवनयापन के लिये मूलभूत सुविधायें तक नहीं हैं। ऐसे में विश्व समुदाय में गरीबी दूर करने और अमीर और गरीब की खाई को मिटाने के उद्देश्य हर साल 17 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस मनाया जाता है। इस दिशा में संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में कई सदस्य देशों द्वारा तमाम प्रयास किये जा रहे हैं।
आर्थिक विकास, तकनीकी साधनों और वित्तीय संसाधनों के अभूतपूर्व स्तर की विशेषता वाली दुनिया में, लाखों लोग अत्यधिक गरीबी में जीवन व्यतीत कर रहे हैं। गरीबी केवल एक आर्थिक मुद्दा नहीं है, बल्कि एक बहुआयामी घटना है जिसमें आय और अभाव दोनों ही बुनियादी क्षमताओं की कमी में जीना शामिल है। संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य में बताया गया है कि किसी एक विशेष कारण से नहीं बल्कि भिन्न-भिन्न कारणों से लोगों को गरीबी में जीवनयापन करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। केवल आय का साधन एवं आमदनी ही गरीबी का मुख्य कारण नहीं है बल्कि भोजन, घर, भूमि, अच्छे स्वास्थ्य, आदि का अभाव भी गरीबी के निर्धारण में अहम भूमिका निभाते हैं।
कोविड की वजह से गरीबी की खाई बढ़ने की आशंका
विश्व के कई देशों में गरीबी की वजह से न सिर्फ अपराध बढ़ रहे हैं, बल्कि ज़बरन मजदूरी से लेकर यौन शोषण तक लड़कियों के लिए विशेष रूप से खतरा है। वैश्विक महामारी की वहज से यह खतरा और बढ़ने की आशंका जताई जा रही है। हाल ही में अन्तरराष्ट्रीय ग़रीबी उन्मूलन दिवस से पहले संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने सभी से ग़रीबी में जीवन गुज़ारने को मजबूर लोगों के साथ कोविड-19 महामारी के दौरान और उसके बाद के समय में भी एकजुटता की अपील की थी।
अंतरराष्ट्रीय गरीबी दिवस से जुड़े तथ्य
* गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले अधिकांश लोग दो क्षेत्रों से संबंधित हैं: दक्षिणी एशिया और उप-सहारा अफ्रीका।
* उच्च गरीबी दर अक्सर छोटे, नाजुक और संघर्ष प्रभावित देशों में पाए जाते हैं।
* 2018 तक, दुनिया की 55 फीसदी आबादी के पास कम से कम एक सामाजिक सुरक्षा नकद लाभ तक पहुंच नहीं है।
* 2018 में, दुनिया के लगभग 8 प्रतिशत श्रमिक और उनके परिवार प्रति दिन 1.90 अमेरिकी डॉलर प्रति व्यक्ति से कम पर रहते थे।
गरीब लोगों के लिये दोहरे संकट का दौर
कोविड को मद्देनज़र रखते हुये इस बार अंतरराष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस की थीम है – ‘सभी कर लिये सामाजिक व पर्यावरणीय न्याय की प्राप्ति के लिये एकजुट कार्रवाई’। दरअसल संयुक्त राष्ट्र इसके तहत बहु-आयामी ग़रीबी की तरफ़ ध्यान आकर्षित करता है जिसका मतलब है कि सामाजिक न्याय तब तक पूरी तरह सुनिश्चित नहीं किया जा सकता, जब तक कि पर्यावरणीय असंतोष का समाधान नहीं निकाला जाता, और इसमें जलवायु परिवर्तन के कारणों से उत्पन्न अन्याय भी शामिल है।
यूएन प्रमुख ने सभी देशों को ध्यान दिलाते हुए कहा कि महामारी ने विश्व के गरीब लोगों के लिये किस तरह दोहरे संकट का रूप ले लिया है। सबसे पहला पहला तो ये कि निर्धन लोगों का वायरस के संक्रमण की चपेट में आने का बहुत जोखिम है, और उस पर कई देशों में गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवा तक उनकी पहुंच नहीं है। वहीं दूसरा हालिया अनुमानों में बताया गया है कि कोविड महामारी इस वर्ष ही लगभग साढ़े 115 मिलियन लोगों को ग़रीबी के गर्त में धकेल सकती है।
महिलाओं के लिये चुनौती
वहीं इसका सीधा असर महिलाओं पर पड़ा है और सबसे ज़्यादा जोखिम का सामना कर रही हैं क्योंकि उनके रोज़गार और आजीविकाएं ख़त्म हो जाने की बहुत आशंका है और उनमें से बहुत सी महिलाओं को कोई सामाजिक संरक्षा भी हासिल नहीं है। यूएन प्रमुख ने समय के इस दौर में ग़रीबी का मुक़ाबला करने के लिये असाधारण प्रयास करने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया है। चूंकि महामारी का मुक़ाबला करने के लिये बलशाली सामूहिक कार्रवाई की ज़रूरत है, महासचिव ने तमाम देशों की सरकारों से संसाधन निवेश करके आर्थिक बदलाव को तेज़ करने का आहवान किया है। इसके अतिरिक्त, देशों को सामाजिक संरक्षा कार्यक्रमों की नई खेप लागू करनी होगी जिसमें उन लोगों को भी संरक्षा में शामिल किया जाए जो अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में कामकाज करते हैं या रोज़गार पाते हैं।