April 20, 2024

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जयंती विशेष: स्वामी विवेकानंद का अल्मोड़ा से था गहरा नाता, अल्मोड़ा के लोगों को दिया था एकता का मूलमंत्र

आज 12 जनवरी है। आज स्वामी विवेकानंद जी की जयंती है। आज स्वामी विवेकानंद की जयंती धूमधाम से मनाई जाएगी। विवेकानंद जी की जयंती को देश युवा दिवस के तौर पर मनाता है। इसकी वजह है, विवेकानंद का आदर्श जीवन, जो हर युवा के लिए प्रेरणा है।

कोलकाता में हुआ जन्म

स्वामी विवेकानंद भारत के आध्यात्मिक गुरु थे। स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी सन्‌ 1863 को हुआ था। उनके पिता विश्वनाथ दत्त पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखते थे। उनका घर का नाम नरेंद्र दत्त था। वे अपने पुत्र नरेंद्र को भी अंगरेजी पढ़ाकर पाश्चात्य सभ्यता के ढंग पर ही चलाना चाहते थे। स्वामी विवेकानन्द अपना जीवन अपने गुरुदेव स्वामी रामकृष्ण परमहंस को समर्पित कर चुके थे। गुरुदेव के शरीर-त्याग के दिनों में अपने घर और कुटुंब की नाजुक हालत की परवाह किए बिना, स्वयं के भोजन की परवाह किए बिना गुरु सेवा में सतत हाजिर रहे। गुरुदेव का शरीर अत्यंत रुग्ण हो गया था। कैंसर के कारण गले में से थूंक, रक्त, कफ आदि निकलता था। इन सबकी सफाई वे खूब ध्यान से करते थे। 25 वर्ष की अवस्था में नरेंद्र दत्त ने गेरुआ वस्त्र पहन लिए। तत्पश्चात उन्होंने पैदल ही पूरे भारतवर्ष की यात्रा की।

अल्मोड़ा से खास नाता

स्वामी विवेकानंद पहली बार 1890 में कुमाऊं के दौरे पर आए थे। अल्मोड़ा के काकड़ीघाट में पीपल के पेड़ के नीचे उन्हें ज्ञान की अनुभूति हुई थी। सांस्कृतिक नगरी से स्वामी विवेकानंद का गहरा नाता रहा है. वह तीन बार अल्मोड़ा आए थे‌। स्वामी जी शहर में जिन जगहों पर ठहरे थे, वहां सालभर लाखों की संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं। अल्मोड़ा के ब्राइट एंड कॉर्नर में बनी रामकृष्ण कुटीर भी इनमें से एक जगह है। उन्होंने 11 मई 1897 के दिन खजांची बाजार में जनसमूह को संबोधित कर लोगों को एकता का संदेश दिया था। 11 मई 1897 को खजांची बाजार में उन्होंने जन समूह को संबोधित किया। स्वामी के ओजस्वी विचारों को सुनने के लिए तब पांच हजार लोग आए थे। स्वामी ने यहां कहा था यह वही भूमि है, जहां रहने की कल्पना वह अपने बाल्यकाल से ही कर रहे थे। उनके मन में हिमालय में एक केंद्र स्थापित करने का विचार था। वर्ष 1897 के भ्रमण के दौरान स्वामी विवेकानंद करीब तीन माह तक देवलधार और अल्मोड़ा में रहे। इस दौरान उन्होंने स्थानीय लोगों के आग्रह पर अल्मोड़ा में तीन बार विभिन्न सभागारों में भी व्याख्यान दिया। तब उनके व्याख्यानों में भारी जनसमूह उमड़ पड़ा था। दो अगस्त 1897 में स्वामी विवेकानंद मैदानी क्षेत्र की तरफ लौट गए।

25 वर्ष की आयु में त्यागा सांसारिक मोह

महज 25 वर्ष की आयु में विवेकानंद ने सांसारिक मोह माया को त्याग दिया और गुरु रामकृष्ण परमहंस के संपर्क में आए। बाद में उन्होंने गुरु के नाम पर रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। अमेरिका के शिकागो में आयोजित विश्व धर्म संसद में ऐतिहासिक भाषण दिया। हालांकि 39 वर्ष की अल्पायु में 4 जुलाई 1992 को स्वामी विवेकानंद का निधन हो गया।