‘हिंदी पत्रकारिता के नवीन विमर्श’ पर हुआ विद्वानों का मंथन

अध्ययन एवं अनुसंधान पीठ द्वारा राष्ट्रीय तरंग संगोष्ठी के तहत “हिंदी पत्रकारिता के नवीन विमर्श” विषय पर वेब संगोष्ठी आयोजित हुई। वेबगोष्ठी में अध्यक्ष रूप में प्रख्यात साहित्यकार, पत्रकार और बिहार लोकसेवा आयोग के सदस्य प्रो. अरुण कुमार भगत, मुख्य अतिथि के रूप में माखनलाल चतुर्वेदी, राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल के प्रो. के.जी. सुरेश, मुख्य वक्ता के तौर पर आईआईएमटी मैनेजमेंट कॉलेज के संकायाध्यक्ष, पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के  प्रोफेसर अनिल कुमार निगम एवं अदिति महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग की शिक्षिका एवं राष्ट्रीय  वेबिनार की  संयोजिका प्रोफेसर माला मिश्रा ने शुरुआत की ।
राष्ट्रीय संगोष्ठी का संयोजन करते हुए प्रो. माला मिश्रा ने रूपरेखा प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता में नवीन विमर्श पर बातचीत होनी आवश्यक है। इस महामारी के दौर में विमर्श पर बात होनी चाहिए। उन्होंने राष्ट्रीय वेब गोष्ठी के उद्देश्यों पर विस्तार से दृष्टि डाली। साथ ही उन्होंने  सभी अतिथियों का स्वागत किया किया।

प्रो अनिल कुमार निगम ने  पत्रकारिता क्षेत्र में बिताए हुए लंबे समय के अनुभवों  को साझा किया

इस अवसर पर मुख्य वक्ता रूप में आईआईएमटी मैनेजमेंट कॉलेज के संकायाध्यक्ष, पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के प्रोफेसर अनिल कुमार निगम ने  पत्रकारिता क्षेत्र में बिताए हुए लंबे समय के अनुभवों  को साझा किया। उन्होंने कहा कि  मैंने पत्रकारिता एवं जनसंचार के क्षेत्र में काफी लंबे समय से कार्य किया है, देखा और मीडिया को समझा है।  मैं पत्रकारिता को एक सजग प्रहरी के तौर पर देखता हूँ। पत्रकारिता, जिसे हम मीडिया कहते हैं। वह लोकतंत्र का पहरुआ है। लोकतंत्र की नींव इसी से मजबूत होती है। मीडिया, लोकतंत्र का संरक्षक है।  इसकी भूमिका बहुत विश्वसनीय होती है। इसके इसी गुण के कारण आज इसपर विश्वास किया जाता है। तभी इसे चौथा स्तंभ कहा गया है। मीडिया राष्ट्र के प्रति जिम्मेदार होता है। यह सच दिखलाता है।
आज पत्रकारिता, खासकर हिंदी पत्रकारिता को तवज्जो मिल रही है। वह नित नवीन प्रतिमान गढ़ रही है। आज वेब जर्नलिज्म में भी  हिंदी भाषा का उन्नयन हो रहा है। आज हिंदी भाषा के पत्र, समाचार पोर्टल हर दिन बढ़ रहे हैं। हिंदी समाचार पत्रों और पोर्टलों की मांग बढ़ने लगी है।  समाचार पत्र-पत्रिकाओं की जिस तरीके से बाजार में मांग बढ़ी, इनका प्रकाशन भी बढ़ रहा है। उसको देखकर लगता है कि हिंदी पत्रकारिता को बल मिला है और वह सशक्त हुई है। उन्होंने कहा कि हिंदी पत्रकारिता को नवीन मीडिया ने एक दिशा दी है। साथ ही एक विमर्श दिया है। पत्रकारिता जनसेवा को कहा जाता रहा है। पत्रकारिता सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करती है।
कोरोनाकाल में मीडिया और मीडियाकर्मियों ने जिम्मेदारी से कार्य किया है।  कोरोना काल में  जिस तरीके से  जान जोखिम में डालकर मीडिया ने प्रथम एवं द्वितीय लहर पर जो रिपोर्टिंग की है, उसको देखकर लगता है कि पत्रकारिता अभी भी जीवित है। पत्रकार आज भी समाज से जुड़े हैं। उन्होंने कोरोनाकाल में पत्रकारों की इस सराहनीय भूमिका के लिए उनकी सराहना करते हुए बधाई दी। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि कई मीडिया संस्थानों और पत्रकारों ने  मीडिया की मूल भावना को ताक में रखकर कार्य किया है। कोरोनाकाल में शमशान घाटों के चित्र दिखाकर लोगों में भय पैदा किया। जो ठीक बात नहीं थी। चैनलों में आज टीआरपी की होड़ मची है। मीडिया का बाजारवाद से प्रभावित होना स्वाभाविक है,लेकिन बाजारुपन होना सही नहीं। बाजारुपन के कारण TRP की चाह में कुछ भी दिखा रहे हैं।  सोशल मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर ऐसे भयावह चित्र सिर्फ टीआरपी की वजह से दिखाए गए हैं। उन्होंने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और इंटरनेट आधारित  मीडिया के आगमन से विमर्श का दायरा बढ़ा  है लेकिन TRp के कारण घंटों भर अनावश्यक विषय पर मंथन हुआ है।
उन्होंने कहा कि संचार के नवीन माध्यमों के आगमन से राजनीति, फैशन, मनोरंजन पर घंटों भर अनावश्यक विमर्श किया जा रहा है। आज समाचार खत्म हो रहे हैं और विज्ञापन दिख रहे हैं। मूल मुद्दों से मीडिया भटक रहा है। जिसपर चिंतन किया जाना  होगा, यही विमर्श है।  उन्होंने कहा कि युवाओं को संस्कारित करना होगा, उनका चरित्र निर्माण करना होगा,
उनमें राष्ट्रीय चेतना जगानी होगी,प्रशासनिक मुद्दों पर बोलना होगा, भाई-भतीजावाद पर बात रखनी होगी, भारतीयता को जगाना होगा, कृषि की समस्याओं को आगे रखना होगा, यह मीडिया का विमर्श होना चाहिए। किंतु वर्तमान में मीडिया इन सभी मुद्दों पर विमर्श करने से बच रही है क्योंकि इन मुद्दों से उसके टीआरपी नहीं बढ़ेगी। इन मुद्दों से चैनलों को टीआरपी नहीं मिल पाएगी। उन्होंने कहा कि आज एजेंडा सेटिंग किया जा रहा है। अब  पेड न्यूज़ का वक्त आ गया है। जिस पर विमर्श और  चर्चा की जानी चाहिए। उन्होंने मीडिया को बाजारवाद से जोड़ते हुए कहा कि विज्ञापन एवं समाचार के बीच अच्छा संतुलन बना रहे। इस पर हमें और हमारे मीडिया घरानों को भी सोचना चाहिए।

राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल के कुलपति प्रो. के.जी. सुरेश ने अपने विचार कुछ इस तरह रखे

इस अवसर पर माखनलाल चतुर्वेदी, राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल के कुलपति प्रो. के.जी. सुरेश ने मुख्य अतिथि के रूप में अपने उद्बोधन में  संस्थान, वेबिनार के आयोजकों के साथ उपस्थित अतिथियों  को बधाई दी। उन्होंने कहा कि समूचा विश्व-समाज कोरोना महामारी के संक्रमण काल से गुजर रहा है। हमने इस कठिन समय को देखा है, अनुभव किया है। 
इस विभीषिका के कारण समाज में सकारात्मकता और नकारात्मकता दोनों ही देखने को मिली है। उन्होंने कहा कि आज लोग सीधे कहते हैं कि पत्रकारिता खराब हो गयी है,मैं इस बात से सहमत नहीं हूँ।  पत्रकारिता को हमको अलग-अलग तरीके से देखना चाहिए । उन्होंने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रिंट मीडिया, डिजिटल मीडिया और सोशल मीडिया,ये सभी पत्रकारिता के अलग अलग प्लेटफॉर्म हैं।  इन सभी को अलग-अलग तरीके से देखना चाहिए और इनमें तुलनात्मक दृष्टि से चिंतन किया जाना चाहिए। इन सभी को तुलनात्मक रूप से देखना चाहिए कि इन अलग अलग माध्यमों में किस तरीके के कंटेंट आ रहे हैं और उनपर विमर्श होना चाहिए। किसी एक प्लेटफार्म में आई हुई गिरावट से पूरे पत्रकारिता जगत को कटघरे में खड़ा किया जाना उचित नहीं है।
उन्होंने कहा कि लोग पत्रकारिता में फेंक कंटेंट आने की बात करते हैं। समूचे मीडिया जगत में यह इल्जाम मढ देना उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि समाचार और पत्रकारों को भी अलग-अलग ढंग से देखना होगा। पत्रकार एक कर्मचारी है और संविदा में कार्यरत है। मीडिया क्षेत्र के संचालकों के उस पर काफी दबाव है। पत्रकार की अधकतर जिम्मेदारी छीन ली गयी है और संपादक हाशिये में चला गया है। पत्रकारिता जगत में पहले प्रतिष्ठित संपादक हुआ करते थे। जो साहित्यकार और पत्रकार दोनों हुआ करते थे। तब  वही समाचार पत्रों के मालिक हुआ करते थे और उनकी निगरानी में ही समाचार पत्रों का संपादन हुआ करता था। इसलिए विमर्श भी जिंदा था लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब विमर्श गायब हो रहा है। स्वतंत्रता के दौरान जो संपादक हुआ करते थे, उनमें मूल्य जीवित थे, सिद्धान्त जीवित थे। अब तो विद्यार्थियों को संपादकों के नाम भी मालूम नहीं होते, क्योंकि अब मीडिया क्षेत्र में बहुत प्रगति हुई है। आज इतने समाचार पत्र, इतने चैनल, इतने न्यूज़ पोर्टल हैं कि उनके  संपादकों का नाम गिनाया जाना बहुत दुष्कर है। आज  तमाम तरह के चैनल व मीडिया घराने स्थापित हो चुके हैं। उन्होंने कहा कि अब प्रबंध संपादकों का दौर आया है। समाचार पत्र और मीडिया को वही लोग नियंत्रित कर रहे हैं।
कुलपति जी ने कहा कि पत्रकारिता जगत में प्रबंध संपादक ही अब तय करने लगे हैं कि क्या छपेगा?  क्या नहीं छपेगा? प्रबंध संपादकों के वर्चस्व के कारण संपादक एवं पत्रकार हाशिये पर आ गए हैं।  प्रिंट मीडिया ने कोरोना काल के दौरान बहुत बेहतर काम किया है। कोरोनाकाल में  प्रिंट मीडिया से जुड़े हुए पत्रकार अग्रिम पंक्ति में दिखाई दिए हैं। उन्होंने अपने सामाजिक दायित्व का निर्वहन किया है। इसी के चलते उन्होंने फ्रंटलाइन वर्कर की भूमिका निभाई है। उन्होंने कहा कि आज सूचनाओं का भरमार है। मुख्यधारा की मीडिया, जिसे हम इलेक्ट्रॉनिक- प्रिंट मीडिया कहते हैं, उसमें विशेषज्ञों से बातचीत कर जनता को जागरुक किया जा रहा है जो मीडिया की सकारात्मक भूमिका है। इन माध्यमों पर इस कठिन दौर में चिकित्सकों, विशेषज्ञों की बातचीत को जनता के सामने ले  जाया जा रहा है। जनता उससे जागरुक भी हुई।  जनता उसका लाभ भी ले रही है।  आज समाज में नकारात्मकता हावी हो रही है। हमें समाज को प्रेरित करना है। हमें तथ्यपरक पत्रकारिता करनी है। हमें पत्रकारिता जगत में एक्टिविस्ट की तरह नहीं बल्कि फैक्टिविस्ट बनने की जररुरत है। फैक्ट अर्थात तथ्यपरक पत्रकारिता करने की जरुरत है। हम सच दिखाने के लिए आत्मबल तैयार करें।  हम विमर्श करने को तैयार रहें। उन्होंने पत्रकारिता के बंधुओं को संबोधित करते हुए कहा कि आज समाधान पर जोर देने की आवश्यकता है। जन सरोकारों से जुड़ी रिपोर्टिंग की आवश्यकता है। संयम बरतने की आवश्यकता है। संयमित भाषा का प्रयोग करने की आवश्यकता है। पत्रकारों को असंतुलित होने की आवश्यकता नहीं है। पत्रकारिता में आज मूल्यों और मानदंडों की आवश्यकता है विश्वसनीयता बनाने की आवश्यकता है। समाज में आ रही विकृतियों को का भांडा फोड़ने की आवश्यकता है। सजग रहने की आवश्यकता है। उन्होंने अपने उद्बोधन में मीडिया के चरित्र को उद्घाटित किया।

पत्रकार और बिहार लोकसेवा आयोग के सदस्य प्रो. अरुण कुमार भगत ने कहा कि मीडिया पर आज दलित एवं महिला विमर्श ही नहीं बल्कि आज भारतीय विमर्श दिखाई दे रहा है

पत्रकार और बिहार लोकसेवा आयोग के सदस्य प्रो. अरुण कुमार भगत ने कहा कि पूर्व के दशकों में दलित एवं महिला विमर्श पर बातचीत हुआ करती थी। कई समय तक यह विमर्श चलता रहा है लेकिन अब दलित एवं महिला विमर्श के अलावा कई मुद्दे विमर्श का विषय बने हुए हैं। जिनपर चिंतन हो रहा है। उन्होंने गोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय मीडिया में भारतीयता की पहचान दिख रही है। भारत की अस्मिता दिखाई दे रही है।  यह हिंदी पत्रकारिता का नवीन विमर्श है। आज की पत्रकारिता भारत, भारतीयता, भारत- बोध का विमर्श दिखता है। हमने देखा कि विगत समय से भारत विदेशी  मीडिया के केंद्र में था। मीडिया पर आज दलित एवं महिला विमर्श ही नहीं बल्कि आज भारतीय विमर्श दिखाई दे रहा है। आज मीडिया में राष्ट्र सर्वोपरि की छवि दिख रही है। जो मीडिया के लिए सुखद क्षण भी है। आज प्रत्येक चैनलों में भारतीयता से जुड़े हुए कार्यक्रम दिखाई पड़ रहे हैं। आज मीडिया के केंद्र में भारतीयता दिखाई दे रही है। आज आतंकवाद, अलगाववाद, टुकड़े-टुकड़े गैंग का भंडाफोड़ भी इनके माध्यम से हो रहा है।उन्होंने कहा कि भारत के सांस्कृतिक अधिष्ठान भी मीडिया पर दिख रहे हैं। राष्ट्रीय चेतना, अखंडता,एकता, समर्पण, भाव-बोध, देश प्रेम, अलगाववाद के खिलाफ तिरस्कार, मीडिया में दिखाई देता है। आज वसुधैव कुटुंबकम की भावना मीडिया में दिखाई पड़ रही है। सर्वे भवन्तु सुखिनः की धारणा को मजबूती मिली है। आज भारतीय मीडिया में भारतीय संस्कृति दिखाई देती है। सहिष्णुता और मर्यादा दिखाई दे रही है। मीडिया एक चिंतक की भांति काम कर रहा है। उसने अपने दायित्वों और कर्तव्यों का पूर्णतया पालन किया है। कर्म के सिद्धांत का अनुपालन करते हुए मीडिया दिखायी दे रही है।
उन्होंने कहा कि लोक मान्यता सर्वोपरि है। जनता के विश्वास पर अविश्वास नहीं किया जा सकता। इसलिए हमें लोक मान्यताओं को मानना ही होगा और स्वीकारना होगा।

प्रो. माला मिश्रा ने कहा कि आज एक दशक बाद मीडिया अपने अच्छे कामों के साथ बहुत बेहतर ढंग से दिखाई दे रहा है

इस अवसर पर संगोष्ठी की संयोजिका और अदिति महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग की शिक्षिका  प्रो. माला मिश्रा ने कहा कि वर्तमान भारतीय मीडिया में मूल्य-बोध दिखाई पड़ रहा है। आज एक दशक बाद मीडिया अपने अच्छे कामों के साथ बहुत बेहतर ढंग से दिखाई दे रहा है। मीडिया के सरोकार बदले हैं। उसने संस्कारों को उजागर किया है। भारत की भावनाओं को जगाया है। समाज और युवाओं को सकारात्मक दिशा दी है। मीडिया जाग गया है। मीडिया में वैचारिक उद्बोधन दिखाई पड़ रहे हैं, जो एक सकारात्मक पहलू है। मीडिया क्षेत्र में नए युवाओं का आगमन होने से मीडिया क्षेत्र को बल मिला है। इस क्षेत्र में संभावना बढ़ी हैं। मीडिया अपनी जिम्मेदारियों से हटकर नहीं सोच रहा है। वह सही तरीके से कार्य कर रहा है।

इस अवसर पर सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय, अल्मोड़ा, पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के शिक्षक डॉ ललित चंद्र जोशी ने अपने विचार इस प्रकार रखे

गोष्ठी के उपरांत अतिथियों से चर्चा सत्र में सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय,अल्मोड़ा (उत्तराखंड) के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के डॉ ललित चंद्र जोशी ने  माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर के.जी. सुरेश जी वार्ता कर जिज्ञासा को शांत किया। डॉ जोशी ने कहा कि वर्तमान समय में मीडिया,सोशल मीडिया पर  अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर कुछ भी लिख देने की परंपरा कहाँ तक जायज है? इस जिज्ञासा को शांत करते हुए उन्होंने कहा  कि मीडिया, सोशल मीडिया आदि पर लोगों को अभियक्ति की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए लेकिन स्वच्छंदता नहीं दी जानी चाहिए। आज आजादी के नाम पर  कुछ भी बोल दिया जा रहा है, वह चिंतनीय है। आज इंटरनेट पर नकारात्मक माहौल बनाया जा रहा है। नफरत फैलाई जा रही है। इसपर लगाम लगनी ही चाहिए।

डॉ मेघना ने प्रो माला मिश्रा के प्रयासों को सराहा

इसके अलावा वाराणसी की डॉ मेघना ने प्रोफेसर माला मिश्रा के प्रयासों की सराहना की। चेन्नई से डॉ राजलक्ष्मी कृष्णन ने जाति-धर्म से हटकर कार्य करने की आवश्यकता पर बल दिया।  डॉ सुनील कुमार  मिश्रा ने मीडिया के समक्ष खड़ी हो रही समस्याओं के संदर्भ में बात रखी।

इस अवसर पर इतने लोग रहे मौजूद

इस अवसर पर प्रज्ञा शिखा, डॉ सुरेश जांगिड़, डॉ रितु माथुर, डॉ वेद प्रकाश भारद्वाज, मुकेश कुमार, डॉ. मुकेश कुमार , डॉ सुरेंद्र पाल वर्मा, सुशील बेहोर, डॉ. मृदुला, प्रिया त्यागी, मोनिका जायसवाल, डॉ. कौशल पांडे डॉक्टर सोनू अन्नपूर्णा,डॉक्टर माथुर, डॉ. मृदुला रस्तोगी, डॉ. आलोक कुमार सिंह, डॉ. सुनील कुमार, डॉ. राजलक्ष्मी कृष्णन, आरती, अनुज मिश्रा, अभिषेक गुप्ता, दीपशिखा सिंह, डॉ.सुनील कुमार मिश्रा, मेघना, डॉ. रितु माथुर,  डॉ ललित चंद्र जोशी डॉ. मेघना राय आदि ने भागीदारी की।