रक्षा क्षेत्र की ताकत बढ़ाने के लिए मेक इन इंडिया परियोजना के तहत 2030 तक नयी पीढ़ी के फ्यूचर टैंक खरीदने की तैयारी में भारत

भारत में रक्षा क्षेत्र की ताकत को और अधिक बढ़ाने के उद्देश्य से भारतीय सेना ‘मेक इन इंडिया’ परियोजना के तहत नई पीढ़ी के ‘फ्यूचर टैंक’ खरीदना चाहती है। इसके तहत भारत में बनने वाले 1,770 फ्यूचर रेडी कॉम्बैट व्हीकल (एफआरसीवी) के लिए विदेशी आयुध कंपनियों को आरएफआई जारी किया गया है।

भारतीय सेना T-72 टैंकों के पुराने बेड़े को बदलेगी

हालांकि दक्षिण कोरिया स्थित हुंडई रोटेम कंपनी पहले ही 2,000 से अधिक टैंकों का ऑर्डर मिलने पर ‘मेक इन इंडिया’ के तहत पांच बिलियन डॉलर की लागत से ‘फ्यूचर रेडी कॉम्बैट व्हीकल’ का उत्पादन करने के लिए तैयार है। यह एक बख्तरबंद प्लेटफॉर्म है, जिसका उपयोग मुख्य रूप से मुख्य युद्धक टैंक के लिए किया जाएगा। भारतीय सेना अपनी आधुनिकीकरण योजनाओं के तहत 2,414 सोवियत मूल के टी-72 टैंकों के अपने पुराने बेड़े को बदलने की इच्छुक है। यदि सब कुछ निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार होता है, तो इस एफआरसीवी के 2025-27 के बीच सेना की सेवा में आने की उम्मीद है।

इस रणनीति में भागीदार बनने के लिए कई भारतीय कंपनियां इच्छुक हैं

बताना चाहेंगे, इन टैंकों को चरणबद्ध तरीके से वर्ष 2030 तक सेना में शामिल किया जाना है। दक्षिण कोरियाई कंपनी ऑर्डर मिलने पर ‘मेक इन इंडिया’ के तहत भारत में इन टैंकों का निर्माण करने के लिए तैयार है, जिसका रणनीतिक भागीदार बनने के लिए कई भारतीय कंपनियां आगे आईं हैं। टैंक निर्माण के क्षेत्र में शामिल प्रमुख रक्षा कंपनियां आरएफपी के माध्यम से भाग लेकर अपनी-अपनी डिजाइन पेश करेंगी। सबसे अच्छी डिजाइन का चयन करके प्रोटोटाइप ‘फ्यूचर टैंक’ का उत्पादन करने के लिए एक विकासशील एजेंसी को नियुक्त किया जाएगा।

40 प्रतिशत स्वदेशी सामग्री से होगा विकसित

भारतीय सेना ने 2017 में भी ‘फ्यूचर रेडी कॉम्बैट व्हीकल’ के लिए आरएफआई जारी किया था। तब कंपनी नवम्बर, 2017 में ही डायरेक्टर जनरल मैकेनाइज्ड फोर्स (डीजीएमएफ) को आरएफआई (सूचना के लिए अनुरोध) का जवाब दे चुकी है। डीजीएमएफ टैंक और आईसीवी डिजाइन करने के लिए सामान्य सेवा गुणात्मक आवश्यकता (जीएसक्यूआर) के प्रचार के लिए नोडल एजेंसी है। आरएफआई में कहा गया था कि मूल उपकरण निर्माता (ओईएम) को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की पेशकश करनी चाहिए। बख्तरबंद प्लेटफॉर्म में 40 प्रतिशत स्वदेशी सामग्री होनी चाहिए।