कवि सूर्यकांत निराला की जयंती आज, निजी जीवन की विपत्तियों को झेलते हुए स्वयं को साहित्य की साधना में किया पूरी तरह समर्पित

मानवीय भावनाओं को अपनी कविताओं में बखूबी पिरोने वाले हिन्‍दी के महान कवि व उपन्यासकार सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ की आज जयंती है । 
छायावाद के चार प्रमुख स्तंभों में से एक, हिंदी साहित्य जगत में निराला जी का अमूल्य योगदान युगों तक अविस्मरणीय रहेगा। वे एक कवि, उपन्यासकार, निबन्धकार और कहानीकार थे। उन्होंने हिंदी काव्य जगत में नई कविता का सूत्रपात किया। परम्परागत काव्य दृष्टि से इतर उन्होंने छंद मुक्त रचनाएं की। भाषा-शैली में अनेकानेक प्रयोग किए। निराला ने निजी जीवन की विपत्तियों को झेलते हुए स्वयं को साहित्य की साधना में पूरी तरह समर्पित कर दिया और यही कारण है कि वे महाप्राण कहलाए।

बंगाल के महिषादल में हुआ था जन्म, साहित्य-संगीत में थी रुचि

महाप्राण निराला का जन्म 21 फरवरी 1897 को बंगाल के महिषादल राज्य में हुआ था। उनका परिवार मूलतः उत्तर प्रदेश का था। उनके पिता बंगाल में नौकरी करते थे। बचपन में ही उनकी मां का देहांत हो गया था। अपने जीवन के प्रारंभिक वर्षों में निराला कई साहित्यिक सम्मेलनों में गए। उनकी प्राथमिक शिक्षा बांग्ला भाषा में हुई थी। उन्होंने अंग्रेजी और संस्कृत भी सीखी थी। बहुत छोटी आयु में उनका विवाह कर दिया गया था,लेकिन जब निराला बीस वर्ष के थे, तभी उनकी पत्नी का देहांत हो गया। बाद में उनकी बेटी की भी मृत्यु हो गई। अपनी बेटी की याद में उन्होंने सरोज-स्मृति नामक ग्रन्थ की रचना भी की। जीवन के प्रारंभिक दौर में दुःख झेलने वाले महाप्राण की रचनाओं में भी वेदना और व्यथा के स्वर सुनाई देते हैं

अनामिका था पहला महाप्राण निराला का पहला काव्य संग्रह

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की पहली कविता ‘जूही की कली है’, जिसे उन्होंने 1916 में लिखा था। उनकी कविताओं का प्रथम संग्रह अनामिका है। निजी जीवन में विपत्तियों के बावजूद उन्होंने साहित्य-रचना जारी रखा। उन्होंने रामकृष्ण मिशन से निकलने वाले समन्वय पत्र को आगे बढ़ाने में बहुत सहयोग दिया। अनामिका, परिमल, गीतिका,बेला, आराधना, गीत-गूंज इत्यादि उनकी पद्य रचनाएं हैं। निराला जी की गद्य रचनाओं में लिली,निरुपमा,चयन,चतुरी चमार, प्रबंध-प्रतिमा सम्मिलित है।

हिंदी से था उन्हें विशेष प्रेम

निराला जी का लेखन बंगाली में शुरू हुआ लेकिन बाद में वे हिंदी में लिखने लगे। लोग बताते हैं कि हिंदी साहित्य और भाषा को लेकर निराला जी काफी संवेदनशील थे। तनिक भी गलत टिप्पणी सहन नहीं करते थे। एक बार एक साहित्यकार ने बातचीत में उनसे कहा कि जैसी लज्जत उर्दू में है, वैसी हिंदी भाषा में नहीं है तो निराला जी ने जवाब दिया कि हिंदी हमारी मां है और मां कैसी भी हो खराब नहीं हो सकती है।

निराला की रचनाओं में स्त्री उत्थान का मिलता है स्वर

स्त्री के भावों, उसके अंदर की वेदना को समझ पाना रचनाकारों के लिए कठिन काम रहा है, लेकिन निराला ने अपनी कविताओं में स्त्री मन को छूने का प्रयास किया है। जब छायावादी कविताओं में रोमांस और रहस्य अधिक लिखा जा रहा था, तब निराला ने किसानों के शोषण पर कविताएं लिखीं। छायावाद में स्त्री को प्रेयसी के रूप में देखा गया है, लेकिन निराला ने स्त्री को श्रमिक के रूप में भी देखा। निराला ने श्रमिक स्त्री पर भी लिखा है। उनकी कविता वह तोड़ती पत्थर श्रमिक स्त्री के सौंदर्य का वर्णन है। निराला ने आगे के कवियों के लिए आदर्श स्थापित किए हैं।