‘शून्य’ की खोज हो या ‘ज्यामिति’ की या ‘पेड़ों में जीवन’ का पता लगाना हो, अथक मेहनत और शोध के दम पर ऐसी उपलब्धियां भारतीय हमेशा हासिल करते रहे हैं, लेकिन श्रेय हमेशा कोई दूसरा ले जाता रहा है। इसी कड़ी में अब एक और शोध व खोज जुड़ने वाली है, पादपों की खोज।
सही मायने में ‘फादर ऑफ बॉटनी’ पराशर ऋषि ही हैं।
नई जानकारियों से पता चला है की भारतीय ”ऋषि पराशर” ने ”थिओफ्रैस्टस” से वर्षों पहले ‘वनस्पति विज्ञान’ पर प्रामाणिक ग्रंथ लिखे हैं। ग्रीस के प्रसिद्ध दार्शनिक एवं प्रकृतिवादी, थिओफ्रैस्टस को विश्व भर में वनस्पति विज्ञान के जनक के रूप में सम्मान के साथ याद किया जाता है, लेकिन इसके लिए ”पराशर ऋषि” ने प्रमाणिक ग्रंथ लिखा है, जिनमें तमाम पादपों की पहचान, जड़, तने को लेकर बहुत ही सूक्ष्म तरीके से की गई है। इस नए शोध के आधार पर कहना होगा कि भारत ही वह पहला देश है, जिसे ‘वनस्पति शास्त्र’ का पितामह देश और पराशर ऋषि को ऐसे वैज्ञानिक के रूप में गिना जाएगा, जिन्होंने सबसे पहले ”वनस्पति विज्ञान” को लिपिबद्ध करने का काम किया है। इसलिए सही मायने में ‘फादर ऑफ बॉटनी’ पराशर ऋषि ही हैं।
यूरोप के इस दार्शनिक को ”वनस्पति शास्त्र” का जनक होने का श्रेय देना गलत होगा
ईसा पूर्व 372 में एरेसस में जन्में थिओफ्रैस्टस के अब तक प्राप्त वनस्पति विज्ञान संबंधी दो निबंधों के आधार पर पूरी दुनिया में यह स्थापित कर दिया गया कि वे ही सर्वप्रथम ”वनस्पति विज्ञान” से दुनिया को परिचित करने वाले वैज्ञानिक हैं, जबकि वर्तमान में ‘वृक्ष आयुर्वेद’ को लेकर निकाली गई काल गणना के बाद अब यह स्पष्ट हो गया है कि यूरोप के इस दार्शनिक को ”वनस्पति शास्त्र” का जनक होने का श्रेय देना गलत होगा। वास्तविकता में उनसे छह हजार साल पूर्व ”ऋषि पराशर” ने इस ग्रंथ को लिखकर यह सिद्ध कर दिया था कि भारत के लिए यह विषय नया नहीं है।
महाभारत काल से पहले की है ऋषि पराशर की उपस्थिति
ऋषि पराशर के बारे में ऐतिहासिक संदर्भों में कहें तो वे महर्षि वशिष्ठ के पौत्र हैं। महाभारत ग्रंथ को इतिहासकार अपनी काल गणना के अनुसार ईसा से कम से कम पांच हजार साल पुराना बताते हैं, यहां पराशर शर-शय्या पर पड़े भीष्म से मिलने गये थे। इतना ही नहीं तो पौराणिक आख्यानों में आया है कि परीक्षित के प्रायोपवेश के समय उपस्थित कई ऋषि-मुनियों में वे भी थे। उन्हें छब्बीसवें द्वापर के व्यास के रूप में भी मान्यता दी गई। यहां गौर करने वाली बात यह है कि द्वापर का काल महाभारत से भी पूर्व का काल खण्ड है, हालांकि यह अब भी शोध का विषय है कि कैसे पहले मनुष्य सैकड़ों वर्ष जीवित रह लेता था। इसी प्रकार से जनमेजय के सर्प यज्ञ में उपस्थित होना भी उनका भारतीय वांग्मय में पाया गया है।
इस तरह हुआ ”ऋषि पराशर” को ‘फादर ऑफ बॉटनी’ स्थापित करने का प्रयास
शोध की दृष्टि से विश्व धरोहर केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान जहां हजारों की संख्या में दुर्लभ और विलुप्त जाति के विदेशी पक्षी पाए जाते हैं की बायोडायवर्सिटी पर वन एवं पर्यावरण मंत्रालय भारत सरकार में अनुसंधानकर्ता रहते हुए शोध करने वाली डॉ. निवेदिता शर्मा ने अपने ऐतिहासिक संदर्भों के अध्ययन के आधार पर व बॉटनी के अब तक के हुए अध्ययनों के निष्कर्ष के तहत सबसे पहले आज यह स्थापित करने का प्रयास किया है कि वनस्पति विज्ञान का पितामह होने का श्रेय किसी को दिया जाना चाहिए तो वह ”ऋषि पराशर” हैं।
”वृक्ष आयुर्वेद” में है वनस्पति विज्ञान के कई रहस्यों की चर्चा
अपनी बात को पुख्ता करने के लिए वे वृक्ष आयुर्वेद के उदाहरण के साथ उनके लिखे अन्य ग्रंथों के बारे में भी बताती हैं। वे कहती हैं कि इस एक ग्रंथ में ही किसी बीच के पौधे बनने से लेकर पेड़ बनने तक संपूर्णता के साथ वैज्ञानिक विवेचन दिया गया है, वह विस्मयकारी है। इस ”वृक्ष आयुर्वेद” पुस्तक के छह भाग हैं- (पहला) बीजोत्पत्ति काण्ड (दूसरा) वानस्पत्य काण्ड (तीसरा) गुल्म काण्ड (चौथा) वनस्पति काण्ड (पांचवां) विरुध वल्ली काण्ड (छटवां) चिकित्सा काण्ड।
इस ग्रंथ के प्रथम भाग बीजोत्पत्ति काण्ड में आठ अध्याय हैं, जिनमें बीज के वृक्ष बनने तक की गाथा का वैज्ञानिक पद्धति से विवेचन किया गया ।