सभ्यता और संस्कृति के संरक्षण करने के लिए यह विश्वविद्यालय कर रहा प्रयास, भविष्य में एक बड़े पर्यटन स्थल के रूप में ऐसे होगा विकसित

पांडुलिपियां हमारे ज्ञान की अनमोल धरोहर हैं, इसलिए कहा जाता है कि पांडुलिपियों का संरक्षण मतलब सभ्यता और संस्कृति का संरक्षण। इसी संरक्षण के माध्यम से हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को ऋषि मुनियों से अर्जित ज्ञान को उन तक पहुंचा सकते हैं। साथ ही साथ प्राचीन काल में हुई खोज के बारे में भी नई पीढ़ी को बता सकते हैं। इसलिए पांडुलिपियों को संरक्षित रखना प्राचीन ज्ञान को संरक्षित और संवर्धित करना है। एक ऐसा ही प्रयास इन दिनों वाराणसी स्थित ‘सम्पूर्णानन्द विश्वविद्यालय’ में देखने को मिल रहा है।

यहां एक लाख दुर्लभ पांडुलिपियों का संग्रह मौजूद

सम्पूर्णानन्द विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में अनेक प्रकार की एक लाख दुर्लभ पांडुलिपियों का संग्रह है। इन पांडुलिपियों को कैसे संरक्षित रखा जाए। इस पर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसमें आर्थिक सहयोग इंफोसिस कर रही है और संरक्षण विधि की जानकारी इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र दे रहा है। वहीं संस्कृत संवर्धन केंद्र के अधिकारी भी इसमें मदद कर रहे हैं। इस कार्यशाला से पांडुलिपियों की सुरक्षा अब और उन्नति के साथ की जा सकेगी।

ऐसे किया जा रहा पांडुलिपियों का संरक्षण

दिल्ली स्थित संस्कृत संवर्धन केंद्र के अधिकारी लक्ष्मी नरसिम्हन बताते हैं कि दिल्ली के इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट्स से कुछ तकनीकी विशेषज्ञ वाराणसी पहुंचे हैं जो पांडुलिपियों संरक्षित रखने के बारे में ट्रेनिंग देंगे और आगे इस दिशा में क्या किया जा सकता है, उसके आधार पर यहां ये प्रोजेक्ट करीब एक साल तक चलेगा। 

ऐतिहासिक महत्व का कार्य

पुस्तकालय अध्यक्ष अमित शुक्ला बताते हैं कि 25 दिवसीय कार्यशाला वाराणसी में पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए सरस्वती भवन पुस्तकालय में की जा रही है। सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. हरे राम त्रिपाठी ने पांडुलिपियों के संरक्षण को ऐतिहासिक महत्व का कार्य बताया तथा उम्मीद जताई कि भविष्य में यह पर्यटन स्थल हो सकता है।